रविवार, 28 फ़रवरी 2010

बुरा न मानो , होली है !

जब सबके ही मुँह काले होँ , फिर किसका मुँह
हम लाल करेँ ?
इस असमंजस मेँ बैठे हैँ , किस रंग का
इस्तेमाल करेँ ?
- रमेश दीक्षित , टिमरनी ।
सभी मित्रोँ , परिचितोँ , शुभ - चिन्तकोँ और स्नेहीजनोँ को होली की बहुत - बहुत
शुभ - कामनाएँ ।

रविवार, 21 फ़रवरी 2010

बेरहम निकले

रहमदिल उनको हम समझे, मग़र वो बेरहम निकले ।
बड़े बेदर्द वो निकले ,
बड़े ही बेशरम निकले ।
नहीँ मालूम था कूचा - ए - क़ातिल मेँ है घर तेरा ,
बचाकर जान क़ातिल से बड़ी मुश्क़िल से हम निकले ।
सुना दी दास्ताँ अपनी मसीहा जानकर उनको ,
मग़र अफ़सोस है हमको ,
वो पत्थर के सनम निकले ।
हमारी आँख मेँ आँसू ,
तो उनकी आँख मेँ शोले ,
हमारे हाथ मेँ दिल था ,
तो उनके पास बम निकले ।
जलाया इस क़दर दिल को ,
बयाँ हम कर नहीँ सकते ,
हमारी आँख से आँसू भी निकले तो गरम निकले ।
बहाया उनके क़दमोँ मेँ , लहू का आख़िरी क़तरा ,
वो गिन के क़तरोँ को बोले ,
कि ये क़तरे तो कम निकले ।
हमारे साथ मेँ कर दी , सितम की इन्तिहा फिर भी, हमारी आरज़ू ये है ,
उन्हीँ क़दमोँ मेँ दम निकले ।

- रमेश दीक्षित , टिमरनी

शुक्रवार, 19 फ़रवरी 2010

ग़ज़ल

ज़रा सा पाने की चाहत में बहुत कुछ जाता है
न जाने सब्र का धागा कहां पर टूट जाता है

किसे हमराह कहते हो यहां तो अपना साया भी
कहीं पर साथ रहता है कहीं पर छूट जाता है

ग़नीमत है नगर वालों लुटेरों से लुटे हो तुम
हमें तो गांव में अक्सर दरोगा लूट जाता है

अजब शै हैं ये रिश्ते भी बहुत मजबूत लगते हैं
ज़रा सी भूल से लेकिन भरोसा टूट जाता है

बमुश्किल हम मुहब्बत के दफ़ीने खोज पाते हैं
मगर हर बार ये दौलत सिकंदर लूट जाता है

-आलोक श्रीवास्तव

ग़ज़ल

जब भी सागर मछुआरों की बातें करता है,
तूफां के अत्याचारों की बातें करता है।

आसमान की जानिब मैं जब सर उठाता हूं,
वो मुझसे टूटे तारों की बातें करता है।

इक मैं हूं कि फ़ाकाकशी पे काट रहा हूं दिन,
इक तू है कि त्यौहारों की बातें करता है।

एक अकेला बूढ़ा घर में और करे भी क्या,
अपनी चिलम से अंगारों की बातें करता है।

सुख-दु:ख के किस्सागो सब ख़त्म हुए,
जो भी मिलता है अख़बारों की बातें करता है।

भाप बनाकर बेच गए जो मुफ़लिस के आंसू,
तू ऐसे दुनियादारों की बातें करता है।

-ग्यान प्रकाश विवेक

आज तक-सबसे तेज़


कभी कभी मेरे दिल में ख़्याल आता है
कि रामायण काल में यदि भारत का सबसे तेज़ चैनल "आज तक" होता तो कैसा होता?
वाल्मिकी को नहीं उठानी पड़ती कोई परेशानी,चंद ही मिनटों में बन जाती रामायण की कहानी।
आइए ज़रा सोचें यदि उस वक्त "आज तक" होता; तो युद्ध का वर्णन कैसा होता?
सबसे पहले टी.वी. पर पहचान ध्वनि के साथ समाचार वाचक की क्रत्रिम मुस्कान दिखाई पड़ती और वह मुस्कराकर कहता-"नमस्कार! आज तक में आपका स्वागत है, मैं हूं षटकासुर।
पेश है अभी तक की ताज़ा खबरें। ताजा जानकारी के मुताबिक श्रीराम की वानर-सेना पत्थरों से बनाए पुल को पार करती हुई समुद्र के उस पार पहुंच चुकी है। जहां श्रीराम के द्वारा अपने प्रमुख सहयोगियों एवं मित्र दलों से विचार-विमर्श के बाद रावण को अंतिम अवसर देते हुए अपनी ओर से "शांति-वार्ता" का प्रस्ताव लेकर अंगद को लंका भेजा गया है। अंगद के लंका से लौटने का समय हो चुका है। पूरे राम-कैंप में उनका बेसब्री से इंतज़ार किया जा रहा है। ज़्यादा जानकारी के लिए चलते हैं हमारे संवाददाता घटोत्कक्ष के पास जो इस वक्त युध्द स्थल पर मौजूद हैं।
"घटोत्कक्ष, आपके पास इस संबंध में क्या ताजा जानकारी है?"
घटोत्कक्ष- जी षटकासुर, अभी-अभी अंगद रावण-दरबार से लौटे हैं और वो सीधे श्रीराम जी से मिलने उनके शिविर में पहुंच गए हैं। हालांकि हमने उनसे बात करने की बहुत कोशिश की मगर उन्होने मीडिया से बात करने में कोई रुचि नहीं दिखाई।
षटकासुर- घटोत्कक्ष, अंगद के आने के बाद वहां का माहौल कैसा है। युध्द के बारे में किस तरह की अटकलें लगाई जा रही हैं।
घटोत्कक्ष- षटकासुर, यहां युध्द लगभग तय माना जा रहा है और अंगद की बाडी-लेंग्वेज़ भी इस तरफ साफ इशारा कर रही थी। कि वे वहां से निराश लौटे हैं और लंकेश रावण ने उनका " शांति-प्रस्ताव" ठुकरा दिया है। लेकिन आधिकारिक तौर पर अभी युद्ध के बारे में कुछ भी नहीं कहा जा सकता है।
षटकासुर- धन्यवाद घटोत्कक्ष ! आप राम-शिविर पर नज़र रखें और ताजा जानकारी हमें देते रहें।
और आइए अब चलते हैं लंका जानने के लिए कि वहां कैसा माहैल है। बात करते हैं हमारे दैत्य संवाददाता अघोरनाथ से।
अघोरनाथ...!
जी षटकासुर,
लंका में क्या चल रहा है?
अघोरनाथ-षटकासुर, वहां युद्ध की तैयारी लगभग पूरी हो चुकी है लेकिन अभी तक प्रथम दिन के युद्ध के नेत्रत्व पर फैसला नहीं हो पाया है।
षटकासुर- किन किन नामों पर विचार चल रहा है?
अघोरनाथ- वैसे तो मेघनाद; कुंभकरण; सहित तीन नामों का पैनल बनाया गया है पर मेघनाद इस दौड़ में सबसे आगे हैं।
षटकासुर- उनके पक्ष में ऐसी क्या बात है जो उनको नेत्रत्व सौंपा जा सकता है।
अघोरनाथ- लीलाधर, मेघनाद एक अच्छे योद्धा हैं और रावण के सबसे चहेते बेटे हैं। रावण उनपर खुद से भी ज़्यादा भरोसा करते हैं।
षटकासुर- धन्यवाद अघोर, आप वहां नज़र बनाए रखिए।
तो इस प्रकार राम-रावण युद्ध की तैयारी पूरी हो चुकी है। परंतु दोनों ही ओर नेत्रत्व को लेकर संशय की स्थिति बनी हुई है।
फिलहाल वक्त हो चुका है एक ब्रेक का आप देखते रहिए आज तक!
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ब्रेक के बाद आपका स्वागत है मैं हूं निशुंभ; आज तक में आपका स्वागत है। पेश अब तक की ताजा खबरें-
* रावण ने शांति प्रस्ताव ठुकराया
* राम-रावण युद्ध कुछ ही देर में शुरू होने के आसार
* राम ने कहा- युद्ध ही अंतिम विकल्प
अब खबरें विस्तार से- अभी अभी प्राप्त ताज़ा जानकारी के अनुसार रावण सेना का नेत्रत्व मेघनाद को सौंप दिया गया है।
हमारे साथ फोन लाइन पर मौजूद है खुद मेघनाद,
मेघनाद जी; मेघनाद जी, क्या आप मुझे सुन पा रहे हैं
(कुछ देर की खामोशी के बाद)
जी निशुंभ,
सबसे पहले मैं यह जानना चाहूंगा कि किन वजहों के चलते आपको युद्ध का नेत्रत्व सौंपा गया ?
मेघनाद- देखिए वजहें तो कई है पर जो सबसे बड़ी वजह है वह है काकाश्री कुंभकरण की नींद। उनको जगाने में काफी समय लग सकता है इसके चलते हाईकमान लंकेश ने युद्ध की कमान मेरे हाथों में दी है।
निशुंभ- मेघनाद जी, आपकी रणनीति क्या होगी।
मेघनाद- वैल; रणनीति का खुलासा तो मैं यहां नहीं करूंगा पर इतना अवश्य कहूंगा कि हम उन दो वनवासियों पर भारी पड़ेंगें।
निशुंभ- मेघनाद जी, विभीषण की बगावत के बारे में आपका क्या कहना है?
मेघनाद- विभीषण काका सत्ता लोलुप व्यक्ति हैं पिताश्री के रहते उनका यह सपना पूरा होने वाला नहीं था इसके चलते उन्होने विरोधियों से हाथ मिला लिया।
निशुंभ- उनपर कोई कार्रवाई की गई है?
मेघनाद- जी हां, उन्हे आदरणीय लंकेश ने लंका से छ: वर्षों के लिए निष्कासित कर दिया है।
निशुंभ- आखरी सवाल, वो आपको कितना नुकसान पहुंचा सकते हैं?
मेघनाद- हां थोड़ा बहुत नुकसान तो हो सकता है पर इसका असर युद्ध के परिणाम पर नहीं पड़ेगा।
निशुंभ- आज तक से बात करने के लिये धन्यवाद!
और आइए अब जानने की कोशिश करते हैं कि सीता जी का हाल कैसा है। बात करते हैं हमारी संवाददाता कलहप्रिया से जो इस वक्त अशोक वाटिका में मौजूद हैं।
निशुंभ- कल्हप्रिया; कलहप्रिया, मेरी आवाज़ आ रही है?
निशुंभ- लगता है कलहप्रिया से हमारा संपर्क टूट गया है।
कलहप्रिया- हां निशुंभ बोलिए।
निशुंभ- जैसा कि युद्ध कुछ ही पलों में शुरू होने वाला है जानन चाहेगें सीता जी की मानसिक स्थिति कैसी है?
कलहप्रिया- निशुंभ, सीता जी की मानसिक स्थिति बहुत खराब है जैसे ही प्रात: उन्होने "आज तक" पर युद्ध के शुरू होने ख़बरें सुनी वो व्याकुल हो उठीं। वो बार-बार एक ही बात दोहरा रहीं है कि प्रभु श्रीराम अवश्य ही युद्ध में विजयी होंगे और मुझे मुक्त करा कर अपने साथ ले जाएगें। निशुंभ हमने जब उनसे इस संबंध में बात करने की कोशिश की तो उन्होने कैमरे के सामने कुछ भी बोलने से इंकार कर दिया। परंतु जब तक युद्ध चलेगा उनका एक एक पल एक युग की तरह बीतेगा और वो हर सांस के साथ श्रीराम की विजय की कामना करती रहेंगी।
कलहप्रिया, अशोकवाटिका, आज तक।
जैसा कि कलहप्रिया ने बताया कि माता सीता की मानसिक स्थिति ठीक नहीं है। और अभी-अभी प्राप्त ताजा जानकारी के अनुसार राम-रावण युद्ध शुरू हो चुका है दोनों ही सेनाएं आर-पार की लड़ाई में जुट गई हैं। आपको सीधे लिए चलते हैं युद्ध स्थल जहां हमारे संवाददाता राक्षसराज शुंभ मौजूद हैं।
निशुंभ- शुंभ युद्ध की क्या स्थिति है?
शुंभ-निशुंभ, युद्ध अपनी अत्यंत भयावह स्थिति में पहुंच चुका है। रावण सेना का नेत्रत्व मेघनाद कर रहे हैं और वानर-सेना की कमान लक्ष्मण संभाले हुए हैं। दोनों ओर से "जय लंकेश" और "हर-हर महादेव" के जयघोष सुनाई दे रहे हैं। मेरे ठीक पीछे जो आप रथ देख रहे हैं। यह मेघनाद का रथ है जो अत्याधुनिक अस्त्र-शस्त्रों से लैस है। जबकि लक्ष्मण धरती पर खड़े-खड़े ही युद्ध कर रहे हैं। दोनों ही योद्धा अपनी पूरी शक्ति और प्राण-पण से युद्ध कर रहे हैं। इस समय किसी की भी जीत का कयास लगाना उतावलेपन का सूचक होगा।
शुंभ, रणभूमि, आज तक।
आज तक में वक्त हो चला है एक ब्रेक का आप कहीं मत जाइए हम तुरत लौटते हैं देखते रहिए आज तक।
ब्रेक के बाद आपका स्वागत है मैं हूं पंपासुर।
एक नज़र डालते हैं अभी तक की ताजा ख़बरों पर
* राम-रावण युद्ध जारी
* शक्ति लगने से लक्ष्मण घायल
* वैद्य के अनुसार लक्ष्मण की हालत गंभीर
* हनुमान संजीवनी लेने के लिए रवाना
* राम ने कहा-मेघनाद कल का सूरज नहीं देखेगा
आज युद्ध समाप्त होने से ठीक पहले लक्ष्मण मेघनाद द्वारा चलाई गई शक्ति के लगने से गंभीर रूप से घायल हो गये।
उनकी हालत स्थिर किंतु चिंताजनक बनी हुई है। श्रेष्ठ वैद्यों का दल उनकी हालत पर नज़र रखे हुए है। हनुमान जी संजीवनी लेने के लिए वायु मार्ग द्वारा प्रस्थान कर चुके हैं। ज़्यादा जानकारी के लिए सीधे चलते हैं राम के शिविर जहां हमारी संवाददाता कंटकी मौजूद हैं।
कंटकी क्या जानकारी है आपके पास? लक्ष्मण जी की हालत कैसी है और हनुमान कब तक लौटेगें संजीवनी लेकर?
कंटकी-पंपासुर जी, लक्ष्मण जी की हालत स्थिर बनी हुई है वैद्य के अनुसार यदि संजीवनी सुबह से पहले आ जाती है तो उन्हे बचाया जा सकता है।
पंपासुर- धन्यवाद कंटकी, हम अपने दर्शकों को बता दें कि आप लक्ष्मण जी को उनके बेहतर स्वास्थ्य के लिये अपनी शुभकामनाएं दे सकते हैं। इसके लिए आप अपने मोबाइल के राइट मैसेज आप्शन में जाइए और शुभकामना लिखिए फिर अपना और अपने शहर का नाम लिखे और इसे ७५७५ पर भेज दें। चुनी हुई शुभकामना आज तक पर दिखाई जाएगीं। दूसरी ओर आपको बता दें कि लंका में जश्न का माहौल है लंकेश ने मेघनाद को बधाई दी है। और अभी अभी प्राप्त ताजा जानकारी के अनुसार हनुमान जी संजीवनी लेकर राम शिविर पहुंच चुके हैं और लक्ष्मण जी का उपचार शुरू किया जा चुका है और वे अब ख़तरे से बाहर हैं। इस वक्त हमारे साथ फोन लाइन पर मौजूद हैं हनुमान जी।
पंपासुर- हनुमान जी, पहले तो संजीवनी लाने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद। लक्ष्मण जी अब कैसे हैं?
हनुमान- अब वे ठीक हैं। संजीवनी अपना काम कर रही है। मैं आपको विश्वास दिलाना चाहूंगा कि कल वानर सेना लक्ष्मण जी के साथ युद्ध में उतरेगी।
पंपासुर- आज तक से बात करने के लिए धन्यवाद।
हनुमान- धन्यवाद।
पंपासुर- तो ये थीं अब तक की ताजा ख़बरें। युद्ध जैसे-जैसे आगे बढ़ेगा हम आपको ताज़ा अपडेट देते रहेंगे। आज के बुलेटिन में बस इतना ही,
देखते रहिए आज तक, नमस्कार।

-हेमन्त रिछारिया

गुरुवार, 18 फ़रवरी 2010

फिर कुंडी खटकी है शुभदे...!


फिर कुंडी खटकी है शुभदे
देख नया दु:ख आया होगा।
खुद चलकर आया होगा
या अपनों ने पहुंचाया होगा॥

सबके हिस्से में से
थोड़ी रोटी और घटा ले।
दाल ज़रा सी है तो क्या
पानी और बढ़ा ले।
भूख उसे लग आई होगी
पता नहीं कब खाया होगा॥

इतने जब पलते आए हैं
एक ये भी पल जाएगा।
खुश हो पगली हमको
एक सहारा और मिल जाएगा।
दु:ख ही तो ऐसा साथी है
जो ना कभी पराया होगा॥
***

दीपक तुम बेकार आ गए

दीपक तुम बेकार आ गए
सूरज वालों की बस्ती में

धूप यहां की है चमकीली
रातें जगमग छैल-छबीली
कौन तुम्हें पूछेगा पगले
तुमपे तनिक रोशनी पीली

संवेदन का क्या कर लोगे
सोचो, यहां पागल मस्ती में॥
***

दोहे

कहां प्रीत की माधुरी, कहां नेह की गंध।
मुंह देखे की बतकही, सुविधा के संबंध॥

जो तू हमसे रूठता, कर लेते मनुहार।
तू खुद से नाराज़ है, कैसे मनाएं यार॥

आ हिलमिलकर बांट लें, आज मिले जो फूल।
मौसम का विश्वास क्या, फिर कब हो अनुकूल॥

मित्र दु:खों की पोटली, इधर उधर मत खोल।
भूल गए हैं लोग यहां, हमदर्दी के बोल॥

सब चिड़ियां राम की, पीली हरी सफेद।
लहू सभी में एक सा, सिर्फ सोच का भेद॥

तुझसे कुछ रिश्ता नहीं, रहा न लंबा साथ।
तू बिछ्ड़ा हम रो दिए, कुछ तो होगी बात॥

-प्रदीप दुबे

बुधवार, 17 फ़रवरी 2010

सौंदर्य प्रतियोगिता


गत दिवस डाकिया एक खत लेकर आया
बोला आपको "सौंदर्य प्रतियोगिता" में है बुलाया।
फिर चुटकी लेते हुए बोला-अब नौ सौ चूहे खाकर बिल्ली जाएगी हज
प्रसन्नता होगी जानकर आपको बनाया गया है जज।
ब्यूटी कांटेस्ट में जाने का हमारा ये पहला मौका था,
अभी तक तो सुंदरियों को गली-मुह्ल्लों में ही देखा था,
सो तय किया हम सौंदर्य-प्रतियोगिता में अवश्य जाएंगे,
सर्वश्रेष्ठ सुंदरी चुन उसे "विश्व-सुंदरी" का ताज पहनाएंगे।
फिर वह दिन आया जब हमें सौंदर्य-प्रतियोगिता में जाना था
नवयौवनाओं को ताकने का ये अच्छा बहाना था।
जब हम वहां पहुंचे हमारा हुआ बडा़ सत्कार,
मिला हमें असीम स्नेह व प्यार।
जैसे ही प्रतियोगिता प्रारंभ हुई,
प्रतियोगी कन्याएं "टू-पीस" पहने मंच पर निकलीं,
दर्शकों सहित हमारी निगाहें भी उन पर फिसलीं।
साथी सदस्यों ने दिखाया अपने हुनर का कमाल,
पूछे प्रतियोगियों से कुछ आडे़-तेडे सवाल।
इस पर हमें वहां क्रोध बहुत है आया,
मगर विवश हो हमने मन ही मन बुदबुदाया।
क्या यही सौंदर्य-प्रदर्शन ?
होता है जहां अधनंगे जिस्मों का दर्शन।
क्या इसी को कहते हैं सौंदर्य-प्रतियोगिता ?
जहां होती है सरेआम नग्न सभ्यता।
ये सब देख हुई बडी़ निराशा,
एक पल भी ना रुकने की मन में जागी अभिलाषा।
पर क्या करते हम मर्यादाओं में महदूद थे,
शहर के नामी लोग हमारे इर्द-गिर्द मौजूद थे।
सो बैठे रहे वहां हम अपने मन को मार
करते रहे प्रतियोगिता के खत्म होने का इंतज़ार।
लंबे समय बाद जब प्रतियोगिता हुई समाप्त,
दर्शक दीर्घा में गई भारी उत्सुकता व्याप्त।
इतने में हमें मंच पर बुलाया गया,
"सर्वश्रेष्ठ सुंदरी" घोषित करें; ऐसा फरमाया गया।
तब हमने हिम्मत करके अपने मुंह को खोला,
फिर सहमे-सहमे दिल से परिणामों को बोला।
कहा-सज्जनों ! आज यहां का माहौल बड़ा रंगीन था,
लेकिन "सर्वश्रेष्ठ सुंदरी" चुनना मामला ज़रा संगीन था।
हुआ ही नहीं आज हमें यहां लज्जा का दर्शन,
दिखाई दिया सिर्फ पाश्चात्य संस्क्रति का नग्न-नर्तन।
यूं देख तमाशा बेशर्मी का दिल मेरा घबराए,
लाख जतन करके भी हम नंबर दे ना पाए।
कहते हुए आज हमें शर्म बड़ी आती है,
आज की प्रतियोगिता निरस्त की जाती है।
असली सौंदर्य देखना हो तो गांव हमारे आना,
दिखाई देगा वहां तुम्हें सुंदरता का अनूठा बाना,
सांझ ढ़ले जब पनघट पर पनिहारिन पानी भरतीं हैं,
भरी गगरिया सिर पे रख के लटक-मटक के चलतीं हैं,
हाथों से जब वे पानी खींचें; कंगना खन-खन करते हैं,
मीठे-मीठे बोल गीत के सुर्ख़ लबों पे सजते हैं,
इक लंबा सा घूंघट अपने मुख पर पहना होता है,
हर गहने से बढ़कर यारों लाज का गहना होता है।
देते हैं छूट खुली तुम्हें; देखना चाहे जितना आकलन कर,
हमारी "ग्राम-सुंदरी" होगी हर "विश्व-सुंदरी" से बढ़कर।

-हेमंत रिछारिया

रविवार, 14 फ़रवरी 2010

प्रेम ही परमात्मा है


प्रेम चतुर्दशी यानि वेलेंटाइन-डे का विरोध करना तो जैसे कुछ लोगों का कर्तव्य बन गया है। जब भी यह त्यौहार आता है ये लोग अपनी पिटी पिटाई दलीलों के जरिए इसका विरोध करना शुरु कर देते हैं। ये लोग तो इतना भी नहीं जानते कि जिन शिव के ये सैनिक होने का दावा करते हैं उन्ही शिव ने प्रेम के वशीभूत होकर ही पार्वती के बिछोह से क्षुब्द होकर स्रष्टि का प्रलय कर दिया था। जीसस, मीरा, क्रष्ण, महावीर, बुध्द आदि सभी ने प्रेम को स्वीकार किया है। जीसस का प्रसिध्द वचन है- प्रेम ही परमात्मा है। फिर ये लोग इतना भी नहीं जानते कि ये किसका विरोध कर रहे हैं प्रेम का या पाश्चात्य संस्क्रति का। यदि प्रेम का तो यह एक कुत्सित मानसिकता है और यदि पाश्चात्य संस्क्रति का तो ये सिर्फ अपने अहंकार का पोषण है। मान लीजिए यदि किसी भारतीय पर्व को विदेशों में इस तरह मनाया जाय तब भी क्या ये इसी प्रकार विरोध करेंगे? प्रेम तो वह मार्ग है जिस पर चलकर परमात्मा को पाया जाता है। रामक्रष्ण ने एक बार अपने शिष्य से कहा था कि यदि तुमने संसार में किसी से भी प्रेम किया हो तो मैं उसे शुध्द करके तुम्हारा साक्षात्कार परमात्मा से करा सकता हूं परंतु यदि तुमने किसी से भी प्रेम नहीं किया है तो तुम्हें परमात्मा से मिला पाना कठिन है। समाज के तथाकथित ठेकेदार उसी प्रेम की संभावना को नष्ट करने की कोशिश कर रहे हैं। हालांकि इस प्रकार विरोध प्रदर्शन करके वो इसे और स्थापित कर रहे हैं। इस बात से वो अनजान हैं क्योंकि जिस चीज़ को जितना दबाया जाता है वह उतनी ही उद्दीप्त होकर प्रकट होती है। आज आवश्यकता प्रेम के विरोध की नहीं बल्कि प्रेम के शुध्दिकरण की है। प्रेम का विरोध तो स्वयं परमात्मा का विरोध है इसलिये ही संत कबीर ने कहा है-

"पोथी पढ़ पढ़ जग मुआ, पंडित भया ना कोय
ढ़ाई आखर प्रेम का, पढै सो पंडित होय"

- हेमन्त रिछारिया

स्नेहिल निमंत्रण

सम्माननीय पाठकों
मेरा बचपन म.प्र. के हरदा जिले के टिमरनी नामक नगर में बीता। लगभग २५ वर्षों तक यहां निवास करने के कारण इस नगर से मुझे बेहद लगाव है। विद्वत्ता के क्षेत्र में "छोटी काशी" के नाम से प्रसिध्द इस नगर में कई उच्च कोटि के कवि एवं साहित्यकार हैं।इस नगर में अनेक प्रतिष्ठित साहित्यिक संस्थाओं का उद्भव व विकास हुआ है। वर्ष २००० में ऐसी ही एक प्रतिष्ठित साहित्यिक संस्था "सुरभि" के अध्यक्ष होने का सौभाग्य मुझे प्राप्त हुआ था। " कवियों की चौपाल" नामक यह ई-पत्रिका उस संस्था एवं टिमरनी नगर के कवि मित्रों एवं साहित्यकारों को सादर समर्पित है। आप सभी रचनाकरों से स्नेहिल निवेदन है कि वे इस पत्रिका को रचनात्मक सहयोग प्रदान करें। ऐसे कवि जो ब्लाग लेखन में रूचि रखते हों और जिनके पास इंटरनेट की सुविधा हो वे हमारी पत्रिका से सीधे जुड़ सकते हैं एवं घर बैठे हमारी पत्रिका में अपने लेख और रचना लिख सकते हैं। यदि आप हमारी पत्रिका से जुड़ना चाहते हैं तो अपना संक्षिप्त परिचय और ई-मेल पता हमें शीघ्र निम्न पते पर ई-मेल करें।
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