बुधवार, 17 फ़रवरी 2010

सौंदर्य प्रतियोगिता


गत दिवस डाकिया एक खत लेकर आया
बोला आपको "सौंदर्य प्रतियोगिता" में है बुलाया।
फिर चुटकी लेते हुए बोला-अब नौ सौ चूहे खाकर बिल्ली जाएगी हज
प्रसन्नता होगी जानकर आपको बनाया गया है जज।
ब्यूटी कांटेस्ट में जाने का हमारा ये पहला मौका था,
अभी तक तो सुंदरियों को गली-मुह्ल्लों में ही देखा था,
सो तय किया हम सौंदर्य-प्रतियोगिता में अवश्य जाएंगे,
सर्वश्रेष्ठ सुंदरी चुन उसे "विश्व-सुंदरी" का ताज पहनाएंगे।
फिर वह दिन आया जब हमें सौंदर्य-प्रतियोगिता में जाना था
नवयौवनाओं को ताकने का ये अच्छा बहाना था।
जब हम वहां पहुंचे हमारा हुआ बडा़ सत्कार,
मिला हमें असीम स्नेह व प्यार।
जैसे ही प्रतियोगिता प्रारंभ हुई,
प्रतियोगी कन्याएं "टू-पीस" पहने मंच पर निकलीं,
दर्शकों सहित हमारी निगाहें भी उन पर फिसलीं।
साथी सदस्यों ने दिखाया अपने हुनर का कमाल,
पूछे प्रतियोगियों से कुछ आडे़-तेडे सवाल।
इस पर हमें वहां क्रोध बहुत है आया,
मगर विवश हो हमने मन ही मन बुदबुदाया।
क्या यही सौंदर्य-प्रदर्शन ?
होता है जहां अधनंगे जिस्मों का दर्शन।
क्या इसी को कहते हैं सौंदर्य-प्रतियोगिता ?
जहां होती है सरेआम नग्न सभ्यता।
ये सब देख हुई बडी़ निराशा,
एक पल भी ना रुकने की मन में जागी अभिलाषा।
पर क्या करते हम मर्यादाओं में महदूद थे,
शहर के नामी लोग हमारे इर्द-गिर्द मौजूद थे।
सो बैठे रहे वहां हम अपने मन को मार
करते रहे प्रतियोगिता के खत्म होने का इंतज़ार।
लंबे समय बाद जब प्रतियोगिता हुई समाप्त,
दर्शक दीर्घा में गई भारी उत्सुकता व्याप्त।
इतने में हमें मंच पर बुलाया गया,
"सर्वश्रेष्ठ सुंदरी" घोषित करें; ऐसा फरमाया गया।
तब हमने हिम्मत करके अपने मुंह को खोला,
फिर सहमे-सहमे दिल से परिणामों को बोला।
कहा-सज्जनों ! आज यहां का माहौल बड़ा रंगीन था,
लेकिन "सर्वश्रेष्ठ सुंदरी" चुनना मामला ज़रा संगीन था।
हुआ ही नहीं आज हमें यहां लज्जा का दर्शन,
दिखाई दिया सिर्फ पाश्चात्य संस्क्रति का नग्न-नर्तन।
यूं देख तमाशा बेशर्मी का दिल मेरा घबराए,
लाख जतन करके भी हम नंबर दे ना पाए।
कहते हुए आज हमें शर्म बड़ी आती है,
आज की प्रतियोगिता निरस्त की जाती है।
असली सौंदर्य देखना हो तो गांव हमारे आना,
दिखाई देगा वहां तुम्हें सुंदरता का अनूठा बाना,
सांझ ढ़ले जब पनघट पर पनिहारिन पानी भरतीं हैं,
भरी गगरिया सिर पे रख के लटक-मटक के चलतीं हैं,
हाथों से जब वे पानी खींचें; कंगना खन-खन करते हैं,
मीठे-मीठे बोल गीत के सुर्ख़ लबों पे सजते हैं,
इक लंबा सा घूंघट अपने मुख पर पहना होता है,
हर गहने से बढ़कर यारों लाज का गहना होता है।
देते हैं छूट खुली तुम्हें; देखना चाहे जितना आकलन कर,
हमारी "ग्राम-सुंदरी" होगी हर "विश्व-सुंदरी" से बढ़कर।

-हेमंत रिछारिया

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