
फिर कुंडी खटकी है शुभदे
देख नया दु:ख आया होगा।
खुद चलकर आया होगा
या अपनों ने पहुंचाया होगा॥
सबके हिस्से में से
थोड़ी रोटी और घटा ले।
दाल ज़रा सी है तो क्या
पानी और बढ़ा ले।
भूख उसे लग आई होगी
पता नहीं कब खाया होगा॥
इतने जब पलते आए हैं
एक ये भी पल जाएगा।
खुश हो पगली हमको
एक सहारा और मिल जाएगा।
दु:ख ही तो ऐसा साथी है
जो ना कभी पराया होगा॥
***
दीपक तुम बेकार आ गए
दीपक तुम बेकार आ गए
सूरज वालों की बस्ती में
धूप यहां की है चमकीली
रातें जगमग छैल-छबीली
कौन तुम्हें पूछेगा पगले
तुमपे तनिक रोशनी पीली
संवेदन का क्या कर लोगे
सोचो, यहां पागल मस्ती में॥
***
दोहे
कहां प्रीत की माधुरी, कहां नेह की गंध।
मुंह देखे की बतकही, सुविधा के संबंध॥
जो तू हमसे रूठता, कर लेते मनुहार।
तू खुद से नाराज़ है, कैसे मनाएं यार॥
आ हिलमिलकर बांट लें, आज मिले जो फूल।
मौसम का विश्वास क्या, फिर कब हो अनुकूल॥
मित्र दु:खों की पोटली, इधर उधर मत खोल।
भूल गए हैं लोग यहां, हमदर्दी के बोल॥
सब चिड़ियां राम की, पीली हरी सफेद।
लहू सभी में एक सा, सिर्फ सोच का भेद॥
तुझसे कुछ रिश्ता नहीं, रहा न लंबा साथ।
तू बिछ्ड़ा हम रो दिए, कुछ तो होगी बात॥
-प्रदीप दुबे
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