मंगलवार, 16 मार्च 2010

भारतीय नववर्ष

वर्ष प्रतिपदा या गुड़ी पड़वाँ का पर्व हम सभी भारतवासियोँ के लिए गर्व का विषय है लेकिन खेद के साथ कहना पड़ता है कि हमारे द्वारा पश्चिम के अन्धानुकरण के कारण इस पर्व से जुड़े धार्मिक , सामाजिक , ऐतिहासिक और राष्ट्रीय महत्व से नई पीढ़ी अवगत नहीँ है । आइये ! आज इस अवसर पर कुछ महत्वपूर्ण तथ्योँ का हम स्मरण करेँ ।
1 - इस दिन ॐकार के ब्रह्मनाद के निरूपण के साथ जगत्पिता ब्रह्माजी ने इस सृष्टि की रचना की थी ।
2 - विश्व की सर्वाधिक प्राचीन एवं विज्ञान सम्मत कालगणना इसी दिन से आरम्भ हुई थी।
3 - शक्ति की उपासना के पर्व ' चैत्रीय नवरात्र ' का यह प्रथम दिन है ।
4 - इस दिन भगवान श्रीराम के राज्याभिषेक के साथ ही भारतवर्ष मेँ रामराज्य की स्थापना हुई थी ।
5 - धर्मराज युधिष्ठिर का राजतिलक भी आज ही के दिन हुआ था ।
6 - आज से 2066 वर्ष पूर्व सम्राट विक्रमादित्य ने आक्रमणकारी शकोँ को पराजित करने के बाद विक्रम सम्वत प्रारम्म किया था ।
7 - आज के ही दिन वरुणावतार भगवान श्री झूलेलाल जी का इस धराधाम पर अवतरण हुआ था ।
8 - सिक्ख पंथ के द्वितीय गुरु अंगद देव जी का जन्म भी आज ही के दिन हुआ था ।
9 - महर्षि दयानन्द सरस्वती जी ने आज के ही दिन आर्य समाज की स्थापना की थी ।
10 - उत्तर भारत के महान हिन्दू योद्धा हेमचन्द्र विक्रमादित्य ने मुग़ल बादशाह अक़बर पर ऐतिहासिक विजय प्राप्त की थी ।
11 - राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संस्थापक आद्य सरसंघचालक डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार जी का जन्म भी आज ही के दिन हुआ था ।
ऐसे महान पर्व पर सभी सुधी पाठकोँ , मित्रोँ , शुभ - चिन्तकोँ , परिजन एवं पुरजन को अनेकानेक शुभ - कामनाएँ एवं हार्दिक बधाई ।
- रमेश दीक्षित , टिमरनी

मंगलवार, 9 मार्च 2010

मेरे दोहे अनुभूति पर


निकले थे घर से कभी, हम सपनों के साथ
इक-इक करके राह में, सबने छोडा हाथ

प्यारी दैरो-हरम से, तेरी ये दहलीज़
मैंने तेरे नाम का, डाल लिया ताबीज़

रखने की गुलदान में,मत करना तुम भूल
नहीं महक सकते कभी, कागज़ के ये फूल

अब ये देखें बीच में, कौन हमारे आय
हम तो बैठे हैं यार, तुझको खुदा बनाय

रोके से रुकता नहीं, करता मन की बात
हम लाचार खड़े रहें, मन की ऐसी जात

कल मुझसे टकरा गई, इक नखराली नार
अधर पांखुरी फूल की, चितवन तेज कटार

तुमने छेड़ा प्यार का, ऐसा राग हुज़ूर
सदियों तक बजता रहा, दिल का ये संतूर

देखो ये संसार है, या कि भरा बाज़ार
संबंधों के नाम पर, सभी करें व्यापार

दुई रोटी के वास्ते, छोड़ दिया जब गांव
भरी दुपहरी यार क्यूं, ढूंढ रहे हो छांव

लौट बराती सब चले, अपने-अपने गांव
रुके रहे देहरी पर, रोली वाले पांव

तुमने अपने प्रेम का, डाला रंग;अबीर
घर बारै मैं आपना, होता गया कबीर

सच से होगा सामना, तो होगा परिवाद
बेहतर है कि छोड़ दो, सपनों से संवाद

-हेमंत रिछारिया

सोमवार, 8 मार्च 2010

फिल्म समीक्षा- "पा"


कल सुबह जब देश-दुनिया का हाल जानने के लिये जब अख़बार पर नज़र डाली तो निगाहें बरबस ही एक विग्यापन पर अटक गई। विग्यापन था फिल्म "पा" के बारे में जो शाम ५:३० बजे स्टार-प्लस पर प्रदर्शित होने वाली थी। यदा-कदा ही इस फिल्म के प्रोमो देखकर इतना तो यकीं हो ही गया था कि "पा" एक देखने लायक फिल्म है। पर जब शाम ५:३० बजे चाय की चुस्कियों के बीच जब यह फिल्म देखी तो मन आर.बाल्की;जो इस फिल्म के लेखक और निर्देशक हैं और अभिनय सम्राट अमिताभ बच्चन के प्रति नतमस्तक हो गया। दोनों ने अपने-अपने क्षेत्र में बहुत ही उम्दा काम किया है। गहन संवेदनाओं; संदेशों और भरपूर मनोरंजन से लबरेज़ "पा" नि:संदेह ही सिने जगत की महानतम फिल्मों में से है। जहां तक अमित जी का सवाल है तो उम्र के इस पड़ाव पर १३ साल के बीमार बच्चे का जीवंत अभिनय कर पाना यदि किसी की सामर्थ्य में है तो बस इस महानायक के। भारतीय सिनेमा जगत में सैकड़ों निर्माता-निर्देशक है पर लीक से हटकर स्वस्थ और संदेशात्मक तस्वीर बनाने वाले उंगलियों पर गिने जा सकते हैं। यहां मैं याद करना चाहूंगा फिल्म "ब्लैक" के निर्देशक संजयलीला भंसाली को, और "तारे ज़मीन पर" के लिये आमिर खान को इस प्रकार की फिल्में भारतीय सिने जगत को एक विशिष्टता प्रदान करतीं हैं। कुछ ही निर्माता निर्देशक ऐसे हैं जो व्यवसाय के आधार पर फिल्में ना बनाकर सामाजिक सुधार और सकारात्मक परिवर्तन के लिये फिल्में बनाते हैं। यहां यदि दि-ग्रेट शो मैन राजकपूर साहब को याद नहीं किया जाये तो यह अन्याय होगा। "प्रेम-रोग" जैसी फिल्म के जरिये उन्होने विधवा विवाह का जो संदेश दिया उसे भला कौन भूल सकता है। एक समय था जब ऐसी फिल्में बाक्स-आफिस पर औंधे मुंह गिरा करतीं थी परिणामस्वरूप भविष्य में कोई निर्माता-निर्देशक कबीर की जमात में शामिल होने की हिम्मत नहीं करता था। पर अच्छी बात है कि अब समय बदल रहा है अब ऐसी फिल्मों को दर्शक भी मिल रहे हैं और सम्मान भी लिहाज़ा अब कई निर्माता-निर्देशक इस ओर अपना ध्यान दें रहे हैं। आज समाज को स्वस्थ व अच्छे मनोरंजन की आवश्यकता है। जो उनके विकास में सहभागी हो सके, उनका मार्गदर्शन कर सके। "पा" इसी क्रम की एक बेहतरीन फिल्म है। इसके लिये मैं एक बार पुन: आर.बाल्की और अमिताभ बच्चन जी का ह्रदय से आभारी हूं, और उम्मीद करता हूं कि जल्द ही हमें ऐसी एक और फिल्म देखने को मिलेगी।

-हेमंत रिछारिया

सोमवार, 1 मार्च 2010

ऐसे खेलें फाग


आओ सखि हम तुम मिल खेलें, ऐसे अबके फाग
धो लें सारे द्वेष ह्रदय के, धो लें सारे राग।

लाज का अवगुंठन मुख पर, धरोगे आखिर कब तक
पांव तुम्हारे भी थिरकेंगे, जब छिड़ेंगे मेरे राग।

लाख करो मनुहार भले, बैंया ना छोडूंगा
व्यर्थ बहाने करके तुम, जाती हो जी भाग।

रंगो की बौछार चहुंदिस, अंबर पे लाली छाई
बूंदो का ले रूप झर रहा, नित नूतन अनुराग।

तेरे मेरे अधर मिलें, तो लगता ऐसे
चूम कली को ले उड़ जाए, जैसे भंवर पराग।

यौवन जब रंग में भीगे, कोई कैसे मन समझाए
उलझी अलकें; तिरछी पलकें, आग लगे है आग।

दिनकर चढ़ा मुंडेर, द्वार खड़े हुरियारे
कहे मैया ओ मूढ़मति, अब तो सपनों से जाग।

-हेमन्त रिछारिया

कविता

नेह ने देह में सेंध दई
अंखियान को रंग अबीरी भयो,
तन तो तन है मन की का कहैं
असरीरी हू थो सो सरीरी भयो,
गहि गैल में चूम लियो नंदलाल ने
हाय वह वहरीरी भयो,
सब चाखन कूं लालच फिरें
जैसे गोरी को गाल पंजीरी भयो।
-आत्मप्रकाश शुक्ल

कविता

इसीलिए तो होली हंसती आज है
इसी ठिठोली में फागुन की लाज है,
इसकी लाली में खिलता श्रंगार है
मलो अबीर गुलाल तुम्हे तो अधिकार है।
आओ आज प्यार कर लें फिर प्यार को
इसी रंग में रंग दें सब संसार को।
-शिवमंगल सिंह "सुमन"

***

फागुन आया गांव

होली के दोहे

दहकी दहकी दोपहर बहकी-बहकी रात।
फागुन आया गांव में लेकर ये सौगात॥

है चंदन के लेप सी ये सीने की आंच।
सखि पाती बिन बैन के नैन मूंदकर बांच॥

खनक उठे हैं लाज के बागी बाजूबंद।
संयम के हर छंद को होने दो स्वछंद॥
-शिवओम अम्बर

बरस नया ले आ गया, रंगो का त्यौहार।
चटक-मटक गोरी फिरे, पिय करे मनुहार॥

केशर से रंगी बदन, कस्तूरी सी रात।
पायल बिछ्वे कर रहे, चुपके-चुपके बात॥

यह यायावर ज़िंदगी, चलते-चलते पांव।
भर पिचकारी मार दे, आए तेरे गांव॥

दहक रहा टेसू खड़ा, घूंघट में है पीर।
बंधन सारे तोड़कर, गोरी हुई अधीर॥

कजरारे नयना हंसे, गाल बने गुलाब।
रंग गुलाबी मन हुआ, मिलने को बेताब॥
-प्रेमचंद सोनवाने

कीचड़ उसके पास था मेरे पास गुलाल।
जो था जिसके पास में उसने दिया उछाल॥
-माणिक वर्मा

होली आई गांव में गई गांव की नींद।
आंखों में सौदे हुए होंठों कटी रसीद॥
-कैलाश गौतम

ग़ज़ल

अधरों पर शब्दों को लिखकर मन के भेद न खोलो
मैं आंखो से सुन सकता हूं तुम आंखो से बोलो

फिर करना निष्पक्ष विवेचन मेरे गुण-दोषों का
पहले मन के कलुश नयन के गंगाजल में धो लो

संबंधों की असिधारा पर चलना बहुत कठिन है
पग धरने से पहले अपने विश्वासों को तौलो

स्नेह-रहित जीवन का कोई अर्थ नहीं है
मेरे मीत न बन पाओ तो और किसी के हो लो

जीवन मरूथल में तरूछाया ढूंढे नहीं मिलेगी
तप्त धरा को मां का शीतल अंश समझकर सो लो

"गोविंद" वाणी-बाण ह्रदय को छ्लनी कर देते हैं
सत्य बहुत कड़्वा होता है सोच-समझकर बोलो

-गोविंदाचार्य "निशात"

प्यार की स्मारिका

सर किसी का आज कांधे पर टिका है
ज़िंदगी कल शत्रु थी अब प्रेमिका है

आइये, चढ़कर यहां से चांद छू लें,
आज मन मेरा हुआ अट्टालिका है

तरबतर है आज सांसे खुशबुओं से
और घर जैसे महकती वाटिका है

स्वप्न जैसे हो गए मुरली मनोहर
आंख जैसे हो गई अब राधिका है

देख लेना और फिर नज़रे चुराना
अंकुराते प्यार की यह भूमिका है

नींद में भी सैर करते हैं गगन की
सुख हमारे नाम ये तुमने लिखा है

ज़िंदगी ने क्या नहीं हमको सिखाया
यूं कहो हम छात्र वह अध्यापिका है

कांच की अलमारियों में बंद रखना
इक घड़ी यह प्यार की स्मारिका है

-दिनेश प्रभात

पीर सदा बेगानी लिख

मिथ्या जीवन के कागज़ पर, सच्ची कोई कहानी लिख
नीर-क्षीर तो लिख न पाया, पानी को तो पानी लिख

सारी उम्र गुज़ारी यों ही, रिश्तों की तुरपाई में
दिल का रिश्ता सच्चा, बाकी सब बेमानी लिख

अपना घर क्यों रहा अछूता, सावन की बौछारों से
शब्द कोष में शब्द नहीं तो, मौसम की नादानी लिख

हारा जगत दुहाई देकर, ढाई आखर की हर बार
राधा का यदि नाम लिखे तो, मीरा भी दीवानी लिख

इश्क मुहब्बत बहुत लिखा है, लैला-मजनूं; रांझा-हीर
मां की ममता;प्यार बहन का, इन लफ़्ज़ों के मानी लिख

पोथी और कितबों ने तो, अक्सर मन पर बोझ दिया
मन बहलाने के खातिर ही, बच्चे की शैतानी लिख

कोशिश करके देख "आरसी", पोंछ सके तो आंसू पोंछ
बांट सके तो दर्द बांट ले, पीर सदा बेगानी लिख

-आर.सी.शर्मा "आरसी"

ग़ज़ल

बादल बेसबब इतना नहीं बरस रहा होगा
हो न हो वो दूर कहीं हंस रहा होगा

बूंदो की आहट पे सुर आया है दिल फरेब
कोई कंगन उन कलाइयों में खनक रहा होगा

अब तक ताज़ा है ज़हन में वो मुलाकात की रात
वो भी उस रोज़ का लम्हा-लम्हा पलट रहा होगा

ये हरे दरख़्त जो आज हैं परिन्दो के बसरगाह
पतझड़ भी कभी इन दरख़्तों का सच रहा होगा

मेरा हर लफ़्ज़ लकीर, अहसास स्याही है "आजाद"
चेहरा एक सांवला-सा ग़ज़ल में दिख रहा होगा

-आजाद

पंजाबी लोकगीत

ਸੁਨ ਵੇ ਫਿਰਂਗਿਯਾਂ ਸਧਰੌਂ ਭੇਰਿਯਾਂ,
ਮੈਂ ਤੇਨੂਆਸ ਸੁਨਾਵਾ|
ਛੁੱਟੀ ਰੇ ਮੇਰੇ ਸੁਰਮੇ ਮਾਹੀ ਨੂ
ਧਾਗਲ ਪਕਡੀ ਪਾਵਾਂ|

हिन्दी-सुन रे फिरंगिया सधरौं भेरियां,
मैं तेनू आस सुनावा।
छुट्टी रे मेरे सुरमे माही नू
धागल पकड़ी पावां

ਖਂਡ ਮਖਨਾ ਰੇ ਪਾਲੇ ਮਾਹੀ ਨੂਂ,
ਕਂਦੀਨੇ ਰਫ੍ਲ ਫਡਾਵਾਂ|
ਫਿਰਂਗਿਯਾ ਤਰਸ ਕਰੋ,
ਤੇਰਾ ਜਸ ਗਿਧੇ ਵਿਚਗਾਵਾਂ|

हिन्दी-खंड मखना रे पाले माही नूं,
कंदीने रफल फड़ावां।
फिरंगिया तरस करो,
तेरा जस गिधे विचगावां।

अर्थ- विरह वेदना से तड़पती हुई विरहनी फिरंगी को लालच देती हुई कहती है कि यदि
तू दया करके मेरे पति को छोड़ दे तो मैं तेरे यश को अपनी सखियों के झुंड में नाच-गाकर सुनाउंगी।

-डा. म्रत्युंजय उपाध्याय