सोमवार, 1 मार्च 2010

कविता

नेह ने देह में सेंध दई
अंखियान को रंग अबीरी भयो,
तन तो तन है मन की का कहैं
असरीरी हू थो सो सरीरी भयो,
गहि गैल में चूम लियो नंदलाल ने
हाय वह वहरीरी भयो,
सब चाखन कूं लालच फिरें
जैसे गोरी को गाल पंजीरी भयो।
-आत्मप्रकाश शुक्ल

कविता

इसीलिए तो होली हंसती आज है
इसी ठिठोली में फागुन की लाज है,
इसकी लाली में खिलता श्रंगार है
मलो अबीर गुलाल तुम्हे तो अधिकार है।
आओ आज प्यार कर लें फिर प्यार को
इसी रंग में रंग दें सब संसार को।
-शिवमंगल सिंह "सुमन"

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