सोमवार, 1 मार्च 2010

ग़ज़ल

बादल बेसबब इतना नहीं बरस रहा होगा
हो न हो वो दूर कहीं हंस रहा होगा

बूंदो की आहट पे सुर आया है दिल फरेब
कोई कंगन उन कलाइयों में खनक रहा होगा

अब तक ताज़ा है ज़हन में वो मुलाकात की रात
वो भी उस रोज़ का लम्हा-लम्हा पलट रहा होगा

ये हरे दरख़्त जो आज हैं परिन्दो के बसरगाह
पतझड़ भी कभी इन दरख़्तों का सच रहा होगा

मेरा हर लफ़्ज़ लकीर, अहसास स्याही है "आजाद"
चेहरा एक सांवला-सा ग़ज़ल में दिख रहा होगा

-आजाद

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