सर किसी का आज कांधे पर टिका है
ज़िंदगी कल शत्रु थी अब प्रेमिका है
आइये, चढ़कर यहां से चांद छू लें,
आज मन मेरा हुआ अट्टालिका है
तरबतर है आज सांसे खुशबुओं से
और घर जैसे महकती वाटिका है
स्वप्न जैसे हो गए मुरली मनोहर
आंख जैसे हो गई अब राधिका है
देख लेना और फिर नज़रे चुराना
अंकुराते प्यार की यह भूमिका है
नींद में भी सैर करते हैं गगन की
सुख हमारे नाम ये तुमने लिखा है
ज़िंदगी ने क्या नहीं हमको सिखाया
यूं कहो हम छात्र वह अध्यापिका है
कांच की अलमारियों में बंद रखना
इक घड़ी यह प्यार की स्मारिका है
-दिनेश प्रभात
सोमवार, 1 मार्च 2010
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अति सुंदर कविता. मन आनंदित हो गया
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