शुक्रवार, 19 फ़रवरी 2010

ग़ज़ल

जब भी सागर मछुआरों की बातें करता है,
तूफां के अत्याचारों की बातें करता है।

आसमान की जानिब मैं जब सर उठाता हूं,
वो मुझसे टूटे तारों की बातें करता है।

इक मैं हूं कि फ़ाकाकशी पे काट रहा हूं दिन,
इक तू है कि त्यौहारों की बातें करता है।

एक अकेला बूढ़ा घर में और करे भी क्या,
अपनी चिलम से अंगारों की बातें करता है।

सुख-दु:ख के किस्सागो सब ख़त्म हुए,
जो भी मिलता है अख़बारों की बातें करता है।

भाप बनाकर बेच गए जो मुफ़लिस के आंसू,
तू ऐसे दुनियादारों की बातें करता है।

-ग्यान प्रकाश विवेक

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